Chandrayaan 3: जब जुगाड़ टेक्नोलॉजी ने दिलाई चंद्रयान-3 को मंजिल
Chandrayaan 3 का चांद पर उतरने का समय अगले हफ्ते के आसपास है और यह घटना देशवासियों के लिए उत्कृष्ट एवं महत्वपूर्ण है। इस महत्वपूर्ण मिशन की सफलता के पीछे उसके अनोखे प्रयास और ‘जुगाड़ टेक्नोलॉजी’ का उपयोग है, जिसने कई सौ करोड़ रुपये बचाए। Chandrayaan 3 को चांद पर पहुंचाने के लिए एक हटकर तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है, जिसे विशेषज्ञों ने ‘जुगाड़ टेक्नोलॉजी’ के रूप में वर्णित किया है। इस तकनीक के माध्यम से चंद्रयान-3 का मिशन मून पर पहुंचना संभव हो रहा है, जो अन्य महत्वपूर्ण राष्ट्रों द्वारा नहीं किया गया है।
ज्यादा पावर बिल्ड करने से हो रही है दिलचस्प टक्नोलॉजिकल प्रयोगण
एक्सपर्टों के अनुसार, Chandrayaan 3 को चांद पर पहुंचाने के लिए ‘जुगाड़ टेक्नोलॉजी’ का अद्वितीय उपयोग किया जा रहा है। चंद्रयान-3 के रॉकेट को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण और एटमोस्फेरिक फ्रिक्शन को कम करने हेतु ज्यादा पावर बिल्ड करने का तरीका अपनाया जा रहा है। इसका मतलब है कि ज्यादा फ्यूअल का उपयोग हो रहा है ताकि रॉकेट को सीधे चांद पर ले जाने में सहायता मिले। यह तकनीक विशेषज्ञों के अनुसार भारत के अन्य मिशनों से अलग है, जो इसे उनके आकार और उद्देश्य के आधार पर अद्वितीय बनाती है।
Chandrayaan 3 की 41 दिन की यात्रा: कैसे बचाए गए करोड़ों रुपये
Chandrayaan 3 की यात्रा चांद पर पहुंचने तक करीब 41 दिनों की होगी, जो इस मिशन की विशेषता है। अगर हम इसे चीन, अमेरिका और रूस के समकक्ष मिशनों से तुलना करें, तो यह यात्रा दोनों मिशनों से कई गुना लंबी है। इसका मतलब यह नहीं है कि भारतीय वैज्ञानिक धीरे हैं, बल्कि यह उनके ‘जुगाड़ टेक्नोलॉजी’ की अद्वितीयता को दर्शाता है जिनसे वे कम फ्यूअल खर्च करते हुए और सम्पादनशील तरीके से मिशन को सफलता दिलाने में सफल हो रहे हैं।
विशेषज्ञ की राय: भारत का अनोखा तरीका
विज्ञान के एक्सपर्ट राघवेंद्र सिंह ने बताया कि चीन, अमेरिका और रूस की टेक्नोलॉजी भारती से थोड़ी एडवांस है और उनका रॉकेट काफी ज्यादा पावरफुल है। उनके अनुसार, “पावरफुल” का मतलब है कि उनके रॉकेट में प्रोप्लैंड की मात्रा अधिक होती है और यह प्रोप्लैंड उनके रॉकेट को ज्यादा पावरफुल बनाता है। इस पावर के कारण उनके रॉकेट पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण और वायुमंडलीय घर्षण को कम करके सीधे चांद पर ले जाते हैं।
मिशन की लागत: भारत की सस्ती जुगाड़ टेक्नोलॉजी
एक्सपर्ट राघवेंद्र ने बताया कि Chandrayaan 3 मिशन की लागत अन्य देशों के मिशनों से कम है। उनके अनुसार, “हमारा रॉकेट कम पावरफुल है इसलिए हम जुगाड़ टेक्नोलॉजी का उपयोग करते हैं। हमारी धरती और चांद की कक्षाओं में गतिविधियाँ घटित हो रही है, इसलिए हम इस मोमेंटम का फायदा उठाते हुए धीरे-धीरे अपनी हाइट बढ़ाते हैं ताकि फ्यूअल कम खर्च हो। दूसरे देश अपने मिशन को 4-5 दिन में पूरा करने के लिए 400 से 500 करोड़ रुपये खर्च करते हैं जबकि भारत में मिशन की लागत 150 करोड़ रुपये है।”
टेक्नोलॉजी का खेल: चांद पर पहुंचने के दो तरीके
चांद पर पहुंचने के दो मुख्य तरीके हैं। चीन, अमेरिका और रूस ने जिस तरीके का इस्तेमाल किया, उसमें रॉकेट को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण को पार करने के लिए चांद की ओर दिशानिर्देश दिया जाता है। दूसरा तरीका है कि रॉकेट से स्पेसक्राफ्ट को पृथ्वी के ऑर्बिट में पहुंचाया जाता है और फिर स्पेसक्राफ्ट को चांद की ओर चक्कर लगाने के लिए बदल दिया जाता है। इसके लिए स्पेसक्राफ्ट धरती की रोटेशनल स्पीड और ग्रेविटेशनल फोर्स का उपयोग करता है। इस प्रक्रिया को “बर्न” कहा जाता है और यह स्पेसक्राफ्ट को उच्च गति पर ले जाता है ताकि वह बिना ज्यादा फ्यूअल खर्च किए सीधे चांद पर पहुंच सके। यह तरीका भारत के मिशन में उपयोग हो रहा है और उन्होंने इसे अपने लक्ष्यों के साथ मिलाकर आविष्कृत किया है।
इस अद्वितीय और ‘जुगाड़ टेक्नोलॉजी’ से युक्त मिशन के माध्यम से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) चंद्र पर सफलतापूर्वक पहुंचने की दिशा में बड़े कदम बढ़ा रहा है। इस अनोखे मिशन से Chandrayaan 3 ने स्वयं को एक मानव-निर्मित चुनौतीग्रस्त अन्तरिक्ष यात्री के रूप में साबित किया है, जिसने तकनीकी माहिरी और उद्देश्यबद्धता का संगम किया है। यह मिशन दुनिया के सामने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान की महत्वपूर्ण उपलब्धि को प्रस्तुत करता है और एक नई यात्रा की शुरुआत करता है जो मानवता के अगले अद्वितीय कदमों की ओर बढ़ रही है।